समर्थक

Friday, November 23, 2012

"सबके मन को बहलाते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

काँटों में भी मुस्काते हैं।
सबके मन को बहलाते हैं।।

काँटों में भी मुस्काते हैं।
सबके मन को बहलाते हैं।।
नागफनी की शैया पर भी,
ये हँसते-खिलते जाते हैं।
सबके मन को बहलाते हैं।। 
सुन्दर सुन्दर गुल गुलाब के,
सारा उपवन महकाते हैं।
सबके मन को बहलाते हैं।। 
नीम्बू की कण्टक शाखा पर,
सुरभित होकर बलखाते हैं। 
सबके मन को बहलाते हैं।।  
काँटों में भी मुस्काते हैं।
सबके मन को बहलाते हैं।।

4 comments:

  1. चलो गुरु जी आते है-
    बढ़िया पोस्ट लगाते है-
    नया नया इक शौक देखिये-
    कार्टून भी लाते हैं-

    ReplyDelete
  2. सुन्दर प्रेरक गीत है .

    नीम्बू की कण्टक शाखा पर,
    सुरभित होकर बलखाते हैं।
    सबके मन को बहलाते हैं।।
    काँटों में भी मुस्काते हैं।
    सबके मन को बहलाते हैं।।

    ReplyDelete
  3. उपर के दोनो गुरूओ की तरह रचना तो नही दे सकते पर आपकी रचना बढिया है

    ReplyDelete

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथासम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।